शिल्पी रंजन
उत्तर में जैसे लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णव देवी तक पहुंचते हैं, उसी तरह मध्यप्रदेश के सतना जिले में भी मां दुर्गा के शारदीय रूप मां शारदा का आशिर्वाद हासिल करने के लिए 1063 सीढ़ियां लांघ जाते हैं। सतना के इस मंदिर को मैहर देवी का मंदिर कहा जाता है। मैहर का मतलब है, मां का हार। यहां सति का हार गिरा था।
पुराणों में इस हार पर कथा की चर्चा विस्तार से की गई है। माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सति शिव से विवाह करना चाहती थी। लेकिन राजा दक्ष शिव को भूतों और अघोरियों का साथी मानते थे। फिर भी सति ने अपने पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने कनखल (हरिद्वार) में `बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ रचाया। उस यज्ञ में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र और अन्य देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान-बूझकर अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। शंकरजी की पत्नी और दक्ष की पुत्री सती इससे बहुत आहत हुई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। इस अपमान से पीड़ित हो, सती ने यज्ञ-अग्नि पुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। भगवान शंकर ने यज्ञपुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया और गुस्से में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने ही सति के अंग को 52 भागों में विभाजित कर दिया। जहाँ-जहाँ सती के शव के विभिन्न अंग और आभूषण गिरे, वहाँ बावन शक्ति पीठो का निर्माण हुआ। अगले जन्म में सती ने हिमवान राजा के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया और घोर तपस्या कर शिवजी को फिर से पति रूप में प्राप्त किया।
पुराणों में इन 52 शक्तिपीठों की चर्चा है। हालांकि सतना के मैहर मंदिर का इसमें जिक्र नहीं है। फिर भी लोगों की आस्था इतनी अडिग है कि यहां सालों पर माता के दर्शन के लिए भक्तों का रेला लगा रहता है।
मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत पर माता शारदा देवी का वास है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां तय करना होता है। पर्वत की चोटी के मध्य में ही शादरा माता का मंदिर स्थापित है। हालांकि पिछले साल से यहां रोप वे की शुरुआत कर दी गई है, जिससे वृद्धों और शारीरिक तौर पर विकलांग लोगों को माता के दर्शन करने में मुश्किल न आये। पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है। इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है।
क्षेत्रीय परंपरा के मुताबिक अल्हा और उदल जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वो भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था और तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही नहीं तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
इसके अलावा ये भी मान्यता है कि यहां पर सर्वप्रथम आदि गुरु शंकराचार्य ने 9वी 10वीं शताब्दी में पूजा अर्चना की थी। शारदा देवी का मंदिर सिर्फ आस्था और धर्म के नज़रिये से खास नहीं है। इस मंदिर का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 को की गई है। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएगें। दुनिया के जाने माने इतिहासकरा ए कनिंग्घम ने इस मंदिर पर विस्तार में शोध किया है। इस मंदिर में प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली आ रही थी। लेकिन 1922 में सतना के राजा ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।
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